स्वच्छता के लिए प्यासा छाब तालाब
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छाब तालाब दाहोद की ऐतिहासिक धरोहर है शायद और आगे कुछ कहें तो शहर की मध्य में स्थित दाहोद शहर की सुंदरता का प्रतिक है यह महान राजा सिद्धराज द्वारा निर्मित छाब तालाब।
छाब तालाब की इतनी तारीफ बहुत हो गई क्योंकि यह स्वच्छता शायद सत्ताधारीओं के दावपेंच के चलते ही अस्वच्छता में तब्दील हो गई. इसकी जवाबदारी प्रशासन की भी है।
आखिर क्यों ऐसा होता है कि बार-बार इस मुद्दे को खबर बनने पर ही ध्यान पर लिया जाता है और अखबारो में समाचार छपने के बाद ही स्वच्छता के काम को हाथ में लिया जाता है।
सत्ताधारीओं के साथ सांठगांठ करने वाले व्यक्ति भी दाहोद के निवासी ही है और उनको भी कभी अपने परिवार के साथ इस तालाब की सुंदरता का लुफ्त उठाने का मन करता ही होगा अगर नहीं तो उसका एक ही कारण होगा उनको मालूम है कि इस तालाब की सुंदरता अब महसूस करने योग्य नहीं है इसकी हवा सांसो में लेने लायक नहीं है।
स्वच्छता के लिए सभी तरह से ग्रांट और मदद ही मिलती है और अगर इस चक्कर में ना भी पड़े तो दाहोद स्मार्ट सिटी बनने जा रही है अब दाहोद शहर को छाब तालाब साफ करने या कराने के लिए अखबारो की सुर्खीओ में रहने की क्यों जरूरत पडेग़ी? क्या इनकी नैतिकता मर चुकी है? या अंधोके हाथ में प्रशासन की चाबी सौंप दी गई है जिससे स्वच्छता के द्वार खुल ही नहीं पा रहे हैं।
शायद ऐसा लगता है कि क्या स्वच्छता अभियान के नीति नियमों में यह छाब तालाब आता ही नहीं है ! क्यों छाब तालाब समग्र गुजरात में स्वच्छता का प्रतीक नहीं बन सकता ?
वस्तुतः जब भी कोई अभियानके मापदंड को साकार करने के बात आती है तब हमेशा आंख मिचोली ही खेली जाती रही है ऐसा ही देखा गया है !
अब दाहोद की जनता की नजर से देखे तो ऐसा ही लग रहा है कि यह स्वच्छता अभियान इसी प्रकार की आंख मिचौली का भोग बनकर खत्म !
आज हमारे इस समाचार के बाद यह तालाब की स्वच्छता के बारे में किसी भी प्रकार की अपील नहीं की जाएगी क्योंकि अपील तब ही होती है जब सुनने वाला कोई जवाबदार हो, बस इतनी ही बात करके नमस्कार वंदन दाहोद की धरा को।