बीज मंत्र की महिमा और मन्त्र सार
मंत्र शास्त्र में बीज मंत्रों का विशेष स्थान है। मंत्रों में भी इन्हें शिरोमणि माना जाता है क्योंकि जिस प्रकार बीज से पौधों और वृक्षों की उत्पत्ति होती है, उसी प्रकार बीज मंत्रों के जप से भक्तों को दैवीय ऊर्जा मिलती है। ऐसा नहीं है कि हर देवी-देवता के लिए एक ही बीज मंत्र का उल्लेख शास्त्रों में किया गया है। बल्कि अलग-अलग देवी-देवता के लिए अलग बीज मंत्र हैं।
“ऐं” सरस्वती बीज । यह मां सरस्वती का बीज मंत्र है, इसे वाग् बीज भी कहते हैं। जब बौद्धिक कार्यों में सफलता की कामना हो, तो यह मंत्र उपयोगी होता है। जब विद्या, ज्ञान व वाक् सिद्धि की कामना हो, तो श्वेत आसान पर पूर्वाभिमुख बैठकर स्फटिक की माला से नित्य इस बीज मंत्र का एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“ह्रीं” भुवनेश्वरी बीज । यह मां भुवनेश्वरी का बीज मंत्र है। इसे माया बीज कहते हैं। जब शक्ति, सुरक्षा, पराक्रम, लक्ष्मी व देवी कृपा की प्राप्ति हो, तो लाल रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर रक्त चंदन या रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“क्लीं” काम बीज । यह कामदेव, कृष्ण व काली इन तीनों का बीज मंत्र है। जब सर्व कार्य सिद्धि व सौंदर्य प्राप्ति की कामना हो, तो लाल रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“श्रीं” लक्ष्मी बीज । यह मां लक्ष्मी का बीज मंत्र है। जब धन, संपत्ति, सुख, समृद्धि व ऐश्वर्य की कामना हो, तो लाल रंग के आसन पर पश्चिम मुख होकर कमलगट्टे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“ह्रौं” शिव बीज । यह भगवान शिव का बीज मंत्र है। अकाल मृत्यु से रक्षा, रोग नाश, चहुमुखी विकास व मोक्ष की कामना के लिए श्वेत आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“गं” गणेश बीज । यह गणपति का बीज मंत्र है। विघ्नों को दूर करने तथा धन-संपदा की प्राप्ति के लिए पीले रंग के आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“श्रौं” नृसिंह बीज । यह भगवान नृसिंह का बीज मंत्र है। शत्रु शमन, सर्व रक्षा बल, पराक्रम व आत्मविश्वास की वृद्धि के लिए लाल रंग के आसन पर दक्षिणाभिमुख बैठकर रक्त चंदन या मूंगे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“क्रीं” काली बीज । यह काली का बीज मंत्र है। शत्रु शमन, पराक्रम, सुरक्षा, स्वास्थ्य लाभ आदि कामनाओं की पूर्ति के लिए लाल रंग के आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“दं” विष्णु बीज । यह भगवान विष्णु का बीज मंत्र है। धन, संपत्ति, सुरक्षा, दांपत्य सुख, मोक्ष व विजय की कामना हेतु पीले रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर तुलसी की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
मन्त्र साधना
वाणी सिद्धि साधना
वाणी सिद्धि एक द्रुलोभ साधना है।लाभ हि लाभ ईस साधना से साधक उठाता है।जो भी सत्य करना सिर्फ एक वार वोल दो कुछ पल मेँ वो सत्य हो जाता है।पल भार मेँ सत्रु कि नाश हो या किसि वश्तु कि कामना हो वो तुरन्त पुरा हो जाता है।साधक के मुख से जो वोली निकला वो सत्य हो के रहता है,चाहे दुनिया ईधार के उधार हो जाय।भारत मेँ ईस तरहा व्यक्ती को काली जुवान से संमधित किया जाता है, जाव कि साधक के मुख कि जिभा काली नहि होति वालकि उसका वोली सत्य होने करण ईस तरहा काहा जाता है। देखा जाय तो आसुर या देवता को जानम से हि य सिद्धि प्राप्त रहता तव तो वारदान देने का लाईक रहेते है।हमरे पुरणओँ मेँ ईस विद्या के विषय मे जानकारी है, किस तरहा रुषिमुनि ईसि विद्या के वल पर किसि को भी अभिशाप देते थे,खुश होने पर वरदान भी दिया करते थे जो फलता भी था।महाभारत मे कुन्ती ने आनजाने मे ईस विद्या का प्रयोग किया जिसका फलसरुप पाँच पाडव को एक स्त्री से विवाह करना पडा जो आज भी कायम है।नेपाल, भारत के अरुणाचलप्रदेश मे ए प्रथा है और एक प्रथा हर धर्म मे प्रचलन हुआ वाडा भाई के मौत किसि करण हो जाय तो, छोटे भाई वाडे भाई के विवि से विवाह राचाना।कलयुग मेँ भी वाणी सिद्धि जागुत साधना है। जो किलित नहि है, किसि भी साधक चाहे तो आसानी से ईस विद्या को हासिल कर साकता है। शव साधना के माधय्म से करे तो ए एक रात का साधना है। शव साधना मेँ वह शव चाहिय जो प्राकुतिक हो। आगर हत्या किया हुआ शव लिया जाय तो साधक के लेने के देने पड साकते है।ए तो था शव साधना का जानकारी। वाणी सिद्धि साधना किस भी दिन से आरंभ किया जा साकता है।दिन या रात किस एक समय का चयन करना पडता है। साफ कपडा परिधान कर ले माथे पर सिँदुर का टिका लाग ले और माला रुद्राक्ष होना चाहिए।दिप धुप प्रजलित कर के हनुमान जि का ध्यान कर के मंत्र जाप आरंभ करना चाहिय। कुछ दिनोँ तक 1100 जाप करना है। साधना पेहेले दिन 1100 घि से होम कर ले सिर्फ पेहेले दिन, आगर आप चाहे तो प्रतिदिन॥ मंत्र-ॐ नमः हनुमते रुद्रवतारय पंन्च मुखाय वाच मुख सिद्धि साधय साधय रामदुताय स्वाहा॥ सावधान-कभी कभी हनुमान स्वयं आजाते है, आगर आय तो वैठने के लिय आसान और खाने के लिय कुछ फल मुल प्रदान करे।
कामदेव मन्त्र साधना महा शिव रात्रि के पर्व पर कीजिये कामदेव की साधना
वसंत के इस मौसम मे महा शिव रात्रि सबसे बड़ा पर्व है इस समय मे मन अद्भुत प्रसन्नता
से भरा होता है।
प्रकृति मे चारों और मादकता से छाई रहती है फल फूल सब मे बाहर आई होती हर पेड़ पौधा अपनी और बरबस आकर्षित कर लेता है
और हम मोहित से होकर प्रकृति की इस सुंदरता को बस देखते ही रह जाते है यंहा तक की अपने कमरे मे भी कैद करने की कोशिश करते है।
इस समय मे आप भी बनाइये अपने आपको आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी कामदेव की अद्भुत मन्त्र साधना से.
सब आपकी और देखते रह जायेंगे महा शिव रात्रि के पर्व पर कीजिये कामदेव की साधना
और वो सब पाइये जो आज तक आपको नहीं मिल पाया .
शिवलिंग के सामने बैठ कर नीचे दिये गये मंत्र की 5 माला का जाप हर रोज करें कुछ भी मीठा भोग मे रखें .बाद मे इसे उठा कर रख ले जल प्रवाहित करें 11 दिन की इस साधना से आप को अद्भुत लाभ होगा लोग आपकी और आकर्षित होंगे आपकी हर बात को ध्यान से सुनेगे आपकी बातें हर व्यक्ति के दिल मे अमिट छाप छोड़ देंगी
लोग आपकी हर बात को सहर्ष स्वीकार करेंगे जो आप चाहोगे वैसा ही होने लगे गा।
करके देखिये प्रभाव आपको खुद मालूम पड़ जायेगा कई मित्रों को स्वपन मे काम देव के दर्शन भी हुये है .
मन्त्र
ओम नमो आदेश गुरु का कामदेव-कामदेव क्या करे ?
तुम मेरे पास हाजिर होकर सब स्त्री पुरुष को मेरे वश मे करे ।
हर वक्त मेरे साथ रहे मेरे कार्य करे ऐसा ना हो तो महादेव के नेत्र से भस्म हो जाये ।
आदेश गुरु महा देव का । मेरे गुर का छू ।
एक माला जाप मे 10 मिनट का समय लगेगा ।
धैर्य पूर्वक करे जीवन हर वो मुकाम मिलेगा जो आप चाहोगे। आपके काम बनाने लगेंगे
आपके किसी भी कार्य के लिये कोई भी आपको माना नहीं कर पायेगा
सफलता खुद चल कर आयेगी आपके पास…
:-माता महाकाली कि नित्याएं / कलाएं–:::
आप सबके प्रेम मार्गदर्शन एवं माता महाकाली की प्रेणा एवं कृपास्वरूप मैं माता महाकाली कि पंद्रह नित्याओं / कलाओं के वर्णन कर रहा हूँ —!
कहीं – कहीं पर सोलह कलाएं या नित्याएं मणि जाती हैं किन्तु मुझे माता कि पंद्रह नित्याओं के बारे में ही ज्ञान मिल सका है अतएव आप सबके समक्ष मैं प्रस्तुत कर रहा हूँ !
एक अभाव आप सब लोगों को खटक सकता है वह ये – की अपने इस वर्णन में मैं किसी नित्या का रूप वर्णन नहीं किया है उसकी वजह ये है की ग्रंथों के हिसाब से जो रूप वर्णन मिलते हैं उनमे कही जगह कुछ ऐसी उपमाएं दी हुयी होती हैं जो मुझ जैसे पुत्रवत भक्त के लिए अशोभनीय है अस्तु मैं सिर्फ नाम और मन्त्रों का उल्लेख ही यहाँ कर रहा हूँ — विज्ञ जनों को यदि मेरे इस लेख में कोई गलतियां मिलती हैं तो कृपापूर्वक मुझे दिशानिर्देश दें — आप सबके सुझावों का स्वागत है :-
१. काली :-
प्रथम नित्य का नाम भी काली ही है और मंत्र है :-
II ॐ ह्रीं काली काली महाकाली कौमारी मह्यं देहि स्वाहा II
२. कपालिनी :-
माता काली कि द्वितीय नित्य का नाम कपालिनी है और मन्त्र है :-
II ॐ ह्रीं क्रीं कपालिनी – महा – कपाला – प्रिये – मानसे कपाला सिद्धिम में देहि हुं फट स्वाहा II
३. कुल्ला :-
माता काली कि तृतीय नित्या का नाल कुल्ला है और मंत्र है :-
II ॐ क्रीं कुल्लायै नमः II
४. कुरुकुल्ला :-
माता कि चतुर्थ नित्या का नाम कुरुकुल्ला है और मंत्र है :-
II क्रीं ॐ कुरुकुल्ले क्रीं ह्रीं मम सर्वजन वश्यमानय क्रीं कुरुकुल्ले ह्रीं स्वाहा II
५. विरोधिनी :-
माता कि पंचम नित्या का नाम विरोधिनी है और मंत्र है :-
II ॐ क्रीं ह्रीं क्लीं हुं विरोधिनी शत्रुन उच्चाटय विरोधय विरोधय शत्रु क्षयकरी हुं फट II
६. विप्रचित्ता :-
माता कि छटवीं नित्या का नाम विप्रचित्ता है और मंत्र है :-
II ॐ श्रीं क्लीं चामुण्डे विप्रचित्ते दुष्ट-घातिनी शत्रुन नाशय एतद-दिन-वधि प्रिये सिद्धिम में देहि हुं फट स्वाहा II
७. उग्रा :-
माता कि सप्तम नित्या का नाम उग्रा है और मंत्र है :-
II ॐ स्त्रीं हुं ह्रीं फट II
८. उग्रप्रभा :-
माँ कि अष्टम नित्या का नाम उग्रप्रभा है और मंत्र है :-
II ॐ हुं उग्रप्रभे देवि काली महादेवी स्वरूपं दर्शय हुं फट स्वाहा II
९. दीप्ता :-
माता कि नवमी नित्या का नाम दीप्ता है और मंत्र है :-
II ॐ क्रीं हुं दीप्तायै सर्व मंत्र फ़लदायै हुं फट स्वाहा II
१०. नीला :-
माता कि दसवीं नित्या का नाम नीला है और मंत्र है :-
II हुं हुं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हसबलमारी नीलपताके हम फट II
११. घना :-
माता कि ग्यारहवीं नित्या के रूप में माता घना को जाना जाता है और मंत्र है :-
II ॐ क्लीं ॐ घनालायै घनालायै ह्रीं हुं फट II
१२. बलाका :-
माता कि बारहवीं नित्या का नाम बलाका है और मंत्र है :-
II ॐ क्रीं हुं ह्रीं बलाका काली अति अद्भुते पराक्रमे अभीष्ठ सिद्धिम में देहि हुं फट स्वाहा II
१३. मात्रा :-
माता कि त्रयोदश नित्या का नाम मात्रा है और मंत्र है :-
II ॐ क्रीं ह्लीं हुं ऐं दस महामात्रे सिद्धिम में देहि सत्वरम हुं फट स्वाहा II
१४. मुद्रा :-
माता कि चतुर्दश नित्या का नाम मुद्रा है और मंत्र है :-
II ॐ क्रीं ह्लीं हुं प्रीं फ्रें मुद्राम्बा मुद्रा सिद्धिम में देहि भो जगन्मुद्रास्वरूपिणी हुं फट स्वाहा II
१५. मिता :-
माता की पंचादशम नित्या का नाम मिता है और मंत्र है :-
II ॐ क्रीं हुं ह्रीं ऐं मिते परामिते ॐ क्रीं हुं ह्लीं ऐं सोहं हुं फट स्वाहा II
साधक सर्वप्रथम स्नान आदि से शुद्ध हो कर अपने पूजा गृह में पूर्व या उत्तर की ओर मुह कर आसन पर बैठ जाए अब सर्व प्रथम आचमन – पवित्रीकरण करने के बाद गणेश -गुरु तथा अपने इष्ट देव/ देवी का पूजन सम्पन्न कर ले तत्पश्चात पीपल के 09 पत्तो को भूमि पर अष्टदल कमल की भाती बिछा ले ! एक पत्ता मध्य में तथा शेष आठ पत्ते आठ दिशाओ में रखने से अष्टदल कमल बनेगा ! इन पत्तो के ऊपर आप माला को रख दे ! अब अपने समक्ष पंचगव्य तैयार कर के रख ले किसी पात्र में और उससे माला को प्रक्षालित ( धोये ) करे ! आप सोचे-गे कि पंचगव्य क्या है ? तो जान ले गाय का दूध , दही , घी , गोमूत्र , गोबर यह पांच चीज गौ का ही हो उसको पंचगव्य कहते है ! पंचगव्य से माला को स्नान करना है – स्नान करते हुए अं आं इत्यादि सं हं पर्यन्त समस्त स्वर वयंजन का उच्चारण करे ! फिर समस्य़ा हो गयी यहाँ कि यह अं आं इत्यादि सं हं पर्यन्त समस्त स्वर वयंजन क्या है ? तो नोट कर ले – ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं !! यह उच्चारण करते हुए माला को पंचगव्य से धोले ध्यान रखे इन समस्त स्वर का अनुनासिक उच्चारण होगा !
माला को पंचगव्य से स्नान कराने के बाद निम्न मंत्र बोलते हुए माला को जल से धो ले –
ॐ सद्यो जातं प्रद्यामि सद्यो जाताय वै नमो नमः
भवे भवे नाति भवे भवस्य मां भवोद्भवाय नमः !!
अब माला को साफ़ वस्त्र से पोछे और निम्न मंत्र बोलते हुए माला के प्रत्येक मनके पर चन्दन- कुमकुम आदि का तिलक करे –
ॐ वामदेवाय नमः जयेष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कल विकरणाय नमो बलविकरणाय नमः !
बलाय नमो बल प्रमथनाय नमः सर्वभूत दमनाय नमो मनोनमनाय नमः !!
अब धूप जला कर माला को धूपित करे और मंत्र बोले –
ॐ अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्य: सर्वेभ्य: सर्व शर्वेभया नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्य:
अब माला को अपने हाथ में लेकर दाए हाथ से ढक ले और निम्न मंत्र का १०८ बार जप कर उसको अभिमंत्रित करे –
ॐ ईशानः सर्व विद्यानमीश्वर सर्वभूतानाम ब्रह्माधिपति ब्रह्मणो अधिपति ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदा शिवोम !!
अब साधक माला की प्राण – प्रतिष्ठा हेतु अपने दाय हाथ में जल लेकर विनियोग करे –
ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्मा विष्णु रुद्रा ऋषय: ऋग्यजु:सामानि छन्दांसि प्राणशक्तिदेवता आं बीजं ह्रीं शक्ति क्रों कीलकम अस्मिन माले प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः !!
अब माला को बाय हाथ में लेकर दाय हाथ से ढक ले और निम्न मंत्र बोलते हुए ऐसी भावना करे कि यह माला पूर्ण चैतन्य व शक्ति संपन्न हो रही है !
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम प्राणा इह प्राणाः ! ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम जीव इह स्थितः ! ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम सर्वेन्द्रयाणी वाङ् मनसत्वक चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण प्राणा इहागत्य इहैव सुखं तिष्ठन्तु स्वाहा ! ॐ मनो जूतिजुर्षतामाज्यस्य बृहस्पतिरयज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु विश्वे देवास इह मादयन्ताम् ॐ प्रतिष्ठ !!
अब माला को अपने मस्तक से लगा कर पूरे सम्मान सहित स्थान दे ! इतने संस्कार करने के बाद माला जप करने योग्य शुद्ध तथा सिद्धिदायक होती है भाइयो !
नित्य जप करने से पूर्व माला का संक्षिप्त पूजन निम्न मंत्र से करने के उपरान्त जप प्रारम्भ करे –
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्व मंत्रार्थ साधिनी साधय-साधय सर्व सिद्धिं परिकल्पय मे स्वाहा ! ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः !
जप करते समय माला पर किसी कि दृष्टि नहीं पड़नी चाहिए ! गोमुख रूपी थैली ( गोमुखी ) में माला रखकर इसी थैले में हाथ डालकर जप किया जाना चाहिए अथवा वस्त्र आदि से माला आच्छादित कर ले अन्यथा जप निष्फल होता है !
पंडित : बाबजी के. कुमार, आदित्य एस्ट्रोलॉजी, दाहोद